Monday, October 18, 2010

अकेली पड जाती हूँ

बारह तेरह घंटे काम के बाद
laptop के बैग उठा के घर जाते वक़्त
घर का ताला खोल के अन्दर जाने के बाद
अकेली पड़ जाती हूँ


खुद के सपनो के साथ पापा के सपने
सब एक के बाद एक तोड़ने के बाद
जब गुजरे और आने वाले कल के बारे में सोचती हूँ
अकेली पड़ जाती हूँ


ग़मों के यादों में जब खो जाती हूँ
जब अजीब सा दर्द उठता है दिल में
आखों से पानी टपकने लगता है
में अकेली पड जाती हूँ


भीख मांगती हूँ एक मुस्कान के लिए
रोती हूँ, हँसती हूँ, खुद से बात करती हूँ
अकेलापन दूर करने की कोशिश करते-करते
मैं फिर से अकेली पड़ जाती हूँ

भाशे