बारह तेरह घंटे काम के बाद
laptop के बैग उठा के घर जाते वक़्त
घर का ताला खोल के अन्दर जाने के बाद
अकेली पड़ जाती हूँ
खुद के सपनो के साथ पापा के सपने
सब एक के बाद एक तोड़ने के बाद
जब गुजरे और आने वाले कल के बारे में सोचती हूँ
अकेली पड़ जाती हूँ
ग़मों के यादों में जब खो जाती हूँ
जब अजीब सा दर्द उठता है दिल में
आखों से पानी टपकने लगता है
में अकेली पड जाती हूँ
भीख मांगती हूँ एक मुस्कान के लिए
रोती हूँ, हँसती हूँ, खुद से बात करती हूँ
अकेलापन दूर करने की कोशिश करते-करते
मैं फिर से अकेली पड़ जाती हूँ
भाशे
4 comments:
बहुत अच्छा हु !
Good one
nice
ನೈಸ ಕನ್ನಡದಲ್ಲೂ ಪ್ರಯತ್ನಿಸಿ
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